रहस्यमय पुराण प्रारंभ भाग -10
भूमण्डल विस्तार वरणम्
पृथ्वी पर के वर्षो और द्वीपों का संक्षेप में वर्णन
भूमण्डल विस्तार वरणम्
पृथ्वी पर के वर्षो और द्वीपों का संक्षेप में वर्णन
(2) पुष्ककर द्वीप NIIHAU ISLAND
पुष्कर द्वीप कि लम्बाई 2.5 योजन अर्थात ढाई योजन और चौड़ाई आधा योजन है यही उस द्वीप का परिमाण है, पुष्कर द्वीप अपने समान विस्तार वाले मीठे जल के समुद्र से धीरा है ब्रह्मा जी द्वारा पृथ्वी पर निर्मित एक उत्तम तीर्थ है जो पुष्ककर नाम से विख्यात है वहाँ दो प्रसिद्द पर्वत है जिन्हे मर्यादा और यज्ञ पर्वत कहते है उन दोनों के बिच में तीन यज्ञ कुंड है जिनके नाम ज्येष्ठ पुष्ककर, माध्यम पुष्ककर और कनिष्ट पुष्ककर है यह पृथ्वी पर तीर्थो में श्रेष्ठ तीर्थ और क्षेत्रों में उत्तम क्षेत्र है वहाँ एक अवियोगा नाम वाली चकौर बावली है तथा एक दूसरा जल से युक्त कुआं है जिसे सौभाग्य कूप कहते है यह तीर्थ प्रलय-प्रर्यंत रहता है अवियोगा नाम वाली चकौर बावली जो है उसका दर्शन करने से ईहलोक या परलोक में स्थित, जीवित या मृत सभी प्रकार से बंधुओं से भेट होती है यही श्री रामचन्द्र जी को अपने पिता का स्वपन्न में दर्शन दिया था जब वह पिता का पिंड दान देने के लिए आये थे यही पर उन्होंने अवियोगा नाम वाली चकौर बावली में स्नान किया, और मध्य पुष्ककर में पिता का श्राद्ध किया उसके बाद पश्चिम दिशा की ओर 1 कोस चलने पर (3.25 KM) ज्येष्ठ पुष्ककर तक जा पहुचे और 1 माह तक रहकर तप किया
उस द्वीप में एक ही वर्ष पर्वत है पुष्करद्वीप के मध्यभाग में वलयाकार रूप में स्थित है वह पुष्कर द्वीप को बीच से चीरता हुआ सा खरा है उसी से विभक्त होकर उस द्वीप के दो खंड हो गए है प्रत्येक खंड गोलाकार है और उन दोनों खण्डों के बीच में वह महापर्वत स्थित है उनके दोनों खंडो में ना कोई नदी है न दूसरा पर्वत
पुष्कर द्वीप कि लम्बाई 2.5 योजन अर्थात ढाई योजन और चौड़ाई आधा योजन है यही उस द्वीप का परिमाण है, पुष्कर द्वीप अपने समान विस्तार वाले मीठे जल के समुद्र से धीरा है ब्रह्मा जी द्वारा पृथ्वी पर निर्मित एक उत्तम तीर्थ है जो पुष्ककर नाम से विख्यात है वहाँ दो प्रसिद्द पर्वत है जिन्हे मर्यादा और यज्ञ पर्वत कहते है उन दोनों के बिच में तीन यज्ञ कुंड है जिनके नाम ज्येष्ठ पुष्ककर, माध्यम पुष्ककर और कनिष्ट पुष्ककर है यह पृथ्वी पर तीर्थो में श्रेष्ठ तीर्थ और क्षेत्रों में उत्तम क्षेत्र है वहाँ एक अवियोगा नाम वाली चकौर बावली है तथा एक दूसरा जल से युक्त कुआं है जिसे सौभाग्य कूप कहते है यह तीर्थ प्रलय-प्रर्यंत रहता है अवियोगा नाम वाली चकौर बावली जो है उसका दर्शन करने से ईहलोक या परलोक में स्थित, जीवित या मृत सभी प्रकार से बंधुओं से भेट होती है यही श्री रामचन्द्र जी को अपने पिता का स्वपन्न में दर्शन दिया था जब वह पिता का पिंड दान देने के लिए आये थे यही पर उन्होंने अवियोगा नाम वाली चकौर बावली में स्नान किया, और मध्य पुष्ककर में पिता का श्राद्ध किया उसके बाद पश्चिम दिशा की ओर 1 कोस चलने पर (3.25 KM) ज्येष्ठ पुष्ककर तक जा पहुचे और 1 माह तक रहकर तप किया
उस द्वीप में एक ही वर्ष पर्वत है पुष्करद्वीप के मध्यभाग में वलयाकार रूप में स्थित है वह पुष्कर द्वीप को बीच से चीरता हुआ सा खरा है उसी से विभक्त होकर उस द्वीप के दो खंड हो गए है प्रत्येक खंड गोलाकार है और उन दोनों खण्डों के बीच में वह महापर्वत स्थित है उनके दोनों खंडो में ना कोई नदी है न दूसरा पर्वत
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