रहस्यमय पुराण प्रारंभ भाग -०8
भूमण्डल विस्तार वरणम्
इस पृथ्वी के केंद्र मेरु पर्वत Bermuda (Magnetic Hole) है, जहां पृथ्वी की अंतिम सीमा है, वहा लोकालोक पर्वत (Ka’ula Island) की स्थिति है यह सूर्य और ब्रह्माण्ड का केंद्र है | मेरु Bermuda (Magnetic Hole) और लोकालोक पर्वत Ka’ula Island (Black Hole)के बिच में सात समुद्र और सात द्वीप है
भूमण्डल विस्तार वरणम्
इस पृथ्वी के केंद्र मेरु पर्वत Bermuda (Magnetic Hole) है, जहां पृथ्वी की अंतिम सीमा है, वहा लोकालोक पर्वत (Ka’ula Island) की स्थिति है यह सूर्य और ब्रह्माण्ड का केंद्र है | मेरु Bermuda (Magnetic Hole) और लोकालोक पर्वत Ka’ula Island (Black Hole)के बिच में सात समुद्र और सात द्वीप है
जो लोकालोक नामक पर्वत Ka’ula Island है जो अत्यंत काले घनघोर स्तम्भ के
सामान अंतरिक्ष के अंतिम सीमा तक स्थापित है यह पृथ्वी के सब ओर सूर्य आदि
के द्वारा प्रकाशित और अप्रकाशित प्रदेशों के बीच में उनका विभाग करने के
लिए स्थित है इसे परमात्मा ने त्रिलोकी के बाहर उसके चारों और सीमा के रूप
में स्थापित किया है यह इतना उचा है और लंबा है की इसके एक और से तीनों
लोको को प्रकाशित करने वाली सूर्य से लेकर ध्रुव पर्यनत समस्त ज्योति मंडल
की किरणे दूसरी और नही जा सकती
जैसे बरमूडा के टैगल में किसी जीव को प्रवेश वर्जीत है उसी तरह यह लोकालोक प्रदेश भी जीव से रहित है
इसके ऊपर चारों दिशाओं में समस्त संसार के गुरु स्वयंभू श्री ब्रह्माजी ने सम्पूर्ण लोकों के स्थित के लिय ऋषभ, पुष्करचुड़, वामन, और अपराजित नाम के चार गजराज नियुक्त किये है
इन दिगज्जों की और अपने अंश स्वरुप इन्द्रादि लोकपालों की विविध शक्तियों की वृद्धि तथा समस्त लोकों के कल्याण के परम ऐश्वर्य के अधपति सर्वान्तर्यामी परम पुरुष श्री हरी अपने विश्वकसेन आदि पार्षदों के सहित इस पर्वत पर सब ओर विराजते है वे अपने विशुद्ध सत्व को जो धर्म, ज्ञान, वैराग्य, और ऐश्वर्य आदि आठ महा सिद्धियों से संपन्न है धारण किये हुय है उनके कर कमलों में शंख-चक्र आयुध सुशोभित है इस प्रकार अपनी योग माया से रचित विविध लोकों की व्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिय वे इसी लीलामय रूप के कल्प के अनत तक वहाँ सब ओर रहते है
मेरु (Bermuda) Magnetic-Hole से लेकर मानसोत्तर पर्वत Ka’ula Island तक जितना अंतर है मनसोत्तर पर्वत से उतनी ही दूरी पर, उतनी ही भूमि शुद्धोदक समुन्द्र की है मेरु शिखर से गंगा जी इसी मार्ग से पृथ्वी पर उतरती है जिसे वर्तमान समय में Bermuda का ट्रैंगल कहा जाता है इसमे गिरी हुई कोई वस्तु फिर नहीं मिलती वहा देवताओं के अतिरिक्त और कोई प्राणी नहीं रहता है
उसके आगे इलावृत वर्ष है इसके आगे अग्निरूपी स्वर्णयमय मेरु भूमि है जो दर्पण के सामान स्वच्छ है
जैसे बरमूडा के टैगल में किसी जीव को प्रवेश वर्जीत है उसी तरह यह लोकालोक प्रदेश भी जीव से रहित है
इसके ऊपर चारों दिशाओं में समस्त संसार के गुरु स्वयंभू श्री ब्रह्माजी ने सम्पूर्ण लोकों के स्थित के लिय ऋषभ, पुष्करचुड़, वामन, और अपराजित नाम के चार गजराज नियुक्त किये है
इन दिगज्जों की और अपने अंश स्वरुप इन्द्रादि लोकपालों की विविध शक्तियों की वृद्धि तथा समस्त लोकों के कल्याण के परम ऐश्वर्य के अधपति सर्वान्तर्यामी परम पुरुष श्री हरी अपने विश्वकसेन आदि पार्षदों के सहित इस पर्वत पर सब ओर विराजते है वे अपने विशुद्ध सत्व को जो धर्म, ज्ञान, वैराग्य, और ऐश्वर्य आदि आठ महा सिद्धियों से संपन्न है धारण किये हुय है उनके कर कमलों में शंख-चक्र आयुध सुशोभित है इस प्रकार अपनी योग माया से रचित विविध लोकों की व्यवस्था को सुरक्षित रखने के लिय वे इसी लीलामय रूप के कल्प के अनत तक वहाँ सब ओर रहते है
मेरु (Bermuda) Magnetic-Hole से लेकर मानसोत्तर पर्वत Ka’ula Island तक जितना अंतर है मनसोत्तर पर्वत से उतनी ही दूरी पर, उतनी ही भूमि शुद्धोदक समुन्द्र की है मेरु शिखर से गंगा जी इसी मार्ग से पृथ्वी पर उतरती है जिसे वर्तमान समय में Bermuda का ट्रैंगल कहा जाता है इसमे गिरी हुई कोई वस्तु फिर नहीं मिलती वहा देवताओं के अतिरिक्त और कोई प्राणी नहीं रहता है
उसके आगे इलावृत वर्ष है इसके आगे अग्निरूपी स्वर्णयमय मेरु भूमि है जो दर्पण के सामान स्वच्छ है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें