रहस्यमय पुराण प्रारंभ भाग -०5
भूमण्डल विस्तार वरणम्
समुन्द्र के निचे के मेरु पर्वत Magnetic-Hole की स्थिति का संक्षेप वर्णन
मेरु Magnetic-Hole की लम्बाई और चौड़ाई एक लाख योजन है इसमे हिमवान, हेमकूट, निषध, मेरु, नील, श्वेत और श्रींगवान ये सात पृथ्वी के मर्यादा पर्वत है और इन सब पर्वतो की दूरी नौ-नौ हजार योजन की है ये सभी दो हजार योजन लम्बे और दो हजार योजन चौड़े है तथा इसकी उचाई 1 लाख से 80 हजार योजन की है इन सब पर्वतों में मेरु Magnetic-Hole सबके मध्य center में स्थित है ये सभी पर्वत समुन्द्र के भीतर स्थित है
पृथ्वी के निचे मूल तहलटी में मेरु रूपी Magnetic-Hole जो 16000 हजार योजन तक धसा हुआ है 48 हजार योजन में गोलाई से चारो तरफ फैला हुआ है इसके चारो ओर चार पर्वत है ये चारों पर्वत मानों मेरु को धारण करने के लिय ईश्वर के द्वारा बनाई किलियाँ है इन चारों किलीयां रूपी पर्वत के पूर्व में मंदराचल, दक्षिण में गंधमादन, पश्छिम में विपुल और उत्तर में सुपाश्र्वा है ये सभी चारों पर्वत दस दस हजार योजन ऊँचे है इन पर्वतों के शिखर पर गयारह ग्यारह सौ योजन ऊंची कदम्ब, जम्बू, पीपल और वट के वृक्ष ध्वजा के समान खड़े है
जो अत्यंत समृद्धशाली देवताओं, दैत्यों और अप्सराओं उनकी सुरक्षा में सनंद्ध रहते है इसके बाद मेरु के मर्यादा रूपी 8 पर्वत आठों दिशाओं में खड़ी है इसके बाद चौदह दूसरे पर्वत है जो सात द्वीप वाली पृथ्वी को अचल रखने में सहायक है अनुमानत: उन पर्वतों की तिरछी होती हुई ऊपर तक की चौड़ाई दस हजार योजन होगी इस पर जगह जगह हरिताल, मैनशिला आदि धातुय तथा सुवर्ण एवं मणिमण्डित गुफाय है जो इसकी शोभा बढ़ाती है सिद्धों के अनेक भवन तथा क्रीड़ा स्थान से संपन्न होने के कारण इसकी प्रभा सदा दीप्त होती रहती है
मेरु गिरी के पूर्व भाग में मंदराचल, दक्षिण में गंधमादन, पच्छिम में विपुल और उत्तरभाग में सुपाश्र्वा पर्वत है उन पर्वतों पर चार महान वृक्ष है इन चारों वृक्षों में जम्बू वृक्ष के कारण इलावृत वर्ष को जम्बू द्वीप के नाम से भी जाना जाता है और इस कारण सम्पूर्ण पृथ्वी को जम्बू द्वीप भी कहते है इलावृत प्रदेश Bermuda सभी ओर से 34 हजार योजन प्रमाण से बताया गया है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें