रहस्यमय पुराण प्रारंभ भाग -29
कल्प विस्तार वरणम्
कल्प गणना ०3
ब्रह्माण्ड की आयु वेदिक गणना के अनुसार
कल्प विस्तार वरणम्
कल्प गणना ०3
ब्रह्माण्ड की आयु वेदिक गणना के अनुसार
इस वर्त्तमान समय में ब्रह्मा जी के दिन रूपी कल्प के मनवन्तर का नाम इस प्रकार है
(1) स्वयंभू मनवन्तर (2) सवारोचिष मनवन्तर (3) उत्तम मनवन्तर (4) तामस मनवन्तर (5) रैवत मनवन्तर (6) चाक्षुस मनवन्तर (7) वैवस्वत मनवन्तर (8) सूर्यसावर्ण मनवन्तर (9) दक्षसावर्ण मनवन्तर (10) ब्रहासावर्ण मनवन्तर (11) धर्मसावर्ण मनवन्तर (12) रूद्रसावर्ण मनवन्तर (13) रोचमान मनवन्तर (14) भौत्य मनवन्तर
ब्रह्मा जी के एक दिन रूपी कल्प में इन चौदह मनवन्तर मे 6 मनवन्तर बीत चुका है अभी सातवा मनवन्तर चल रहा है जिसका नाम वैवस्त मनवन्तर है और आठ से चौदह मनवन्तर जो है वह इस मनवन्तर के बीत जाने के बाद एक एक कर के आयेगा और जायेगा इस तरह से ब्रह्मा जी के एक दिन की समाप्ति होती है ब्रह्मा जी के 1000 चतुर्युग बराबर दिन होता है और इतने ही चतुर्युग के बराबर रात होती है इस तरह ब्र्ह्मा जी दिन रूपी कल्प मे मनवन्तर बनाते, श्री विष्णु जी सभी का पालन करते है और शंकर जी सभी का संहार करते रहते है| कितने हीं कल्प आये और गये इसका तो व्याख्या करना अत्यन्त ही कठिन है यह सब सिर्फ़ शेष नाग रूपी भगवान विष्णु जी ही जानते है उनकी माया क़ी कोई अन्त ही नहीं है|
(1) स्वयंभू मनवन्तर (2) सवारोचिष मनवन्तर (3) उत्तम मनवन्तर (4) तामस मनवन्तर (5) रैवत मनवन्तर (6) चाक्षुस मनवन्तर (7) वैवस्वत मनवन्तर (8) सूर्यसावर्ण मनवन्तर (9) दक्षसावर्ण मनवन्तर (10) ब्रहासावर्ण मनवन्तर (11) धर्मसावर्ण मनवन्तर (12) रूद्रसावर्ण मनवन्तर (13) रोचमान मनवन्तर (14) भौत्य मनवन्तर
ब्रह्मा जी के एक दिन रूपी कल्प में इन चौदह मनवन्तर मे 6 मनवन्तर बीत चुका है अभी सातवा मनवन्तर चल रहा है जिसका नाम वैवस्त मनवन्तर है और आठ से चौदह मनवन्तर जो है वह इस मनवन्तर के बीत जाने के बाद एक एक कर के आयेगा और जायेगा इस तरह से ब्रह्मा जी के एक दिन की समाप्ति होती है ब्रह्मा जी के 1000 चतुर्युग बराबर दिन होता है और इतने ही चतुर्युग के बराबर रात होती है इस तरह ब्र्ह्मा जी दिन रूपी कल्प मे मनवन्तर बनाते, श्री विष्णु जी सभी का पालन करते है और शंकर जी सभी का संहार करते रहते है| कितने हीं कल्प आये और गये इसका तो व्याख्या करना अत्यन्त ही कठिन है यह सब सिर्फ़ शेष नाग रूपी भगवान विष्णु जी ही जानते है उनकी माया क़ी कोई अन्त ही नहीं है|
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