रहस्यमय पुराण प्रारंभ भाग -०१
यह जगत विष्णु जी से उतप्पन हुआ है, उन्ही में स्थित है, वे ही इसकी स्थिती और लय के कर्ता है तथा यह जगत भी वे ही है, यह विष्णु जी कहाँ से आये? उनकी उतपप्ती कैसे हुआ? यह कोई नहीं जनता, उन्होंने ही इस मायामय संसार की रचना सिर्फ लीलामात्र के लिए की है
विष्णु जी की वास्तविक रूप नाग है, यह नाग ही ब्रह्मा, विष्णु और शंकर है जैसे एक ही व्यक्ति के तीन प्रतिबिम्भ,
यह जगत विष्णु जी से उतप्पन हुआ है, उन्ही में स्थित है, वे ही इसकी स्थिती और लय के कर्ता है तथा यह जगत भी वे ही है, यह विष्णु जी कहाँ से आये? उनकी उतपप्ती कैसे हुआ? यह कोई नहीं जनता, उन्होंने ही इस मायामय संसार की रचना सिर्फ लीलामात्र के लिए की है
विष्णु जी की वास्तविक रूप नाग है, यह नाग ही ब्रह्मा, विष्णु और शंकर है जैसे एक ही व्यक्ति के तीन प्रतिबिम्भ,
जैसे एक किसान खेत को बनाता और बीज डालता है उसके बाद खेत की रक्षा करता है उसके बाद जब फसल पक जाती है उसे काट लेते है
इस प्रक्रिया में एक किसान पहले जब खेत बनाया और बीज बोया उस समय वह ब्रह्मा का कार्य कर रहा था, जब वह खेतों के फसल की रक्षा में लगा था उस समय वह विष्णु के रूप में था जब वह फसल काटा उस समय वह शिव रूप था इसी तरह यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों एक ही है
ब्रह्मा, विष्णु और शिव जो है उनका काम उतपति, स्थिती और संहार के कारण है, उन विकार रहित शुद्ध, अविनासी, परमात्मा, सर्वदा एकरस, सर्ववीजायी, भगवान विष्णु को नमस्कार है, जो एक होकर भी नाना रूप वाले स्थूल सूक्ष्म, अव्यक्त एवं व्य्क्त रूप में सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड से लेकर पृथ्वी तक अपने आप को स्थित कर रखे है, जो परे से भी परे है, परमश्रेष्ठ, अन्तरात्माओं में स्थित परमात्मा, रूप, वर्ण, नाम, विशेषण आदि से रहित है, जिसमे जन्म, वृद्धि, परिमाण, क्षय और नाश इन छह: विकारो का सर्व्था अभाव है, वे सर्वत्र है, और समस्त विश्व बसा हुआ है इसलिए विद्वानों ने नित्य, अजन्मा, अक्षय, अव्यय, एकरस, परब्रह्मा कहा है |
1. ब्र्ह्मा जी के रूप में सृष्टी की रचना करते है
2. विष्णु जी के रूप में सृष्टी का पालनकर्ता है
3. शंकर जी के रूप में समस्त चीजो का संहार कर देते है
इस प्रक्रिया में एक किसान पहले जब खेत बनाया और बीज बोया उस समय वह ब्रह्मा का कार्य कर रहा था, जब वह खेतों के फसल की रक्षा में लगा था उस समय वह विष्णु के रूप में था जब वह फसल काटा उस समय वह शिव रूप था इसी तरह यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों एक ही है
ब्रह्मा, विष्णु और शिव जो है उनका काम उतपति, स्थिती और संहार के कारण है, उन विकार रहित शुद्ध, अविनासी, परमात्मा, सर्वदा एकरस, सर्ववीजायी, भगवान विष्णु को नमस्कार है, जो एक होकर भी नाना रूप वाले स्थूल सूक्ष्म, अव्यक्त एवं व्य्क्त रूप में सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड से लेकर पृथ्वी तक अपने आप को स्थित कर रखे है, जो परे से भी परे है, परमश्रेष्ठ, अन्तरात्माओं में स्थित परमात्मा, रूप, वर्ण, नाम, विशेषण आदि से रहित है, जिसमे जन्म, वृद्धि, परिमाण, क्षय और नाश इन छह: विकारो का सर्व्था अभाव है, वे सर्वत्र है, और समस्त विश्व बसा हुआ है इसलिए विद्वानों ने नित्य, अजन्मा, अक्षय, अव्यय, एकरस, परब्रह्मा कहा है |
1. ब्र्ह्मा जी के रूप में सृष्टी की रचना करते है
2. विष्णु जी के रूप में सृष्टी का पालनकर्ता है
3. शंकर जी के रूप में समस्त चीजो का संहार कर देते है
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