रविवार, 23 नवंबर 2014

रहस्यमय पुराण प्रारंभ भाग -32

रहस्यमय पुराण प्रारंभ भाग -32

कल्प विस्तार वरणम्

कल्प गणना ०6

ब्रह्माण्ड की आयु वेदिक गणना के अनुसार

अब मनुष्यों के गणना विधी समझ लीजिये
(आँख के पलक को उठने और गिरने में जितना समय लगता है उसे निमेष कहते है)
1 निमेष
15 निमेष =1 काष्ठा
30 काष्ठा = 1 कला
30 कला = 1 क्षण
6 क्षण = 1 धडी
2 धडी = 1 मुहर्त
30 मुहर्त 1 दिन-रात (15 मुहर्त का दिन और 15 मुहर्त की रात होती है) (24 hrs)
30 दिन = 1 महीना

1 महीना में 2 पक्ष होते है जिसमे 15 दिन का कृष्णपक्ष 15 दिन को शुक्लपक्ष होता है
यह दो पक्ष पितरों का संध्या और संध्यांश है, इसमे संध्या पितरो की दिन होता है और रात्री को संध्यांश कहते है यह सांध्या और संध्यांश पृथ्वी की उत्तरायण भाग Alaska में होता है, पूर्णिमा वाले जो 15 दिन के मनुष्य के लिए जो रात्री होती है वह पितरों के लिए 1 रात होता है, जो आमवाश्या वाली 15 दिन की जो काली रात होती है वह पितरों का 1 दिन होता है इस तरह मनुष्यों का जो एक महीना का समय होता है वह पितरों के लिए एक दिन होता है

एक मनवनतर में संध्या और संध्यांश इस तरह से होता है सतयुग में 400 वर्ष के सध्या और 400 वर्ष के संध्यांश होता है, त्रेता में 300 वर्ष के स्नाध्या और 300 वर्ष के संध्यांश होता है, द्वापर में 200 वर्ष के सध्या और 200 वर्ष के संध्यांश होता है और कलयुग में 100 वर्ष के सध्या और 100 वर्ष के संध्यांश होता है

संध्या और संध्यांश के बिच में जो मनुष्यों वाली दिन रात होती है उसे युग कहते है, जब चार चतुर्युग वाला काल एक चरण से दूसरे चरण की ओर जाता है तो यह संध्या और संध्यांश की इस तरह के स्थिती होती है युग के आरम्भ में संध्या के समय मनुष्य जैसा दिन रात होता है, जब युग का अंत होने लगता है तब संध्यांश के समय मनुष्यों जैसी दिन रात होते है यही इसका प्रमाण है यह स्थिती इस वर्त्तमान समय में पृथ्वी की उत्तरायण भाग के अलास्का नाम वाले जगह में डेड हॉर्स नाम के प्रांत में होते दिखाई देता है

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